People’s Union for Democratic Rights

A civil liberties and democratic rights organisation based in Delhi, India

रिपोर्ट नैनीताल जिले में नवम्बर 1988 में ज़मीन को लेकर उपजे विवाद और संघर्ष को पिछले दशकों में सरकारी नीतियों के तहत भूमि आवंटन में हुए अन्यायों और धांधलियों के संदर्भ में सामने रखती है| यह ज़मीन विभाजन से प्रभावित शरणार्थियों और स्वतंत्रता सेनानियों को विभिन्न सरकारी योजनाओं द्वारा बांटी गई थी| बाद में ९९ साल की लीज़ पर निजी व्यक्तियों व् सहकारी समितियों को भी ज़मीन आवंटित की गई|

रिपोर्ट में दिखाया गया है कि कैसे ज़मींदारी उन्मूलन अधिनियम न केवल नैनीताल में पूरी तरह विफल रहा बल्कि कैसे उसके प्रावधानों ने सरकार को वहां सबसे बड़ा ज़मींदार बना दिया और बड़ी ज़मीन व् फार्म हाउस मालिकों को मज़बूत किया| इसी तरह जब 1972 में लैंड सीलिंग कानून नैनीताल में लागू हुआ तो भूमि गणना के तरीके कुछ ऐसे थे कि केवल 1.4% ज़मीन ही सीलिंग सीमा से बाहर पाई गई और इसमें से भी केवल 0.4% ही भूमिहीनों में बांटी गई| बड़े फार्मों पर तो लैंड सीलिंग कानून का कोई असर पड़ा ही नहीं|

भूमि आवन्टन और वितरण की इस तरह की खोखली व् अन्यायपूर्ण व्यवस्था के चलते, नैनीताल के भूमिहीन लोगों ने खुद को संगठित कर जंगल की ज़मीन पर हक जताने व् कब्ज़ा करने की कोशिश की| इसमें से ज़्यादातर ज़मीन सरकार के वन विभाग के पास थी| वन विभाग के मनमाने व् अनियमित तरीकों को भी रिपोर्ट में उजागर किया गया है| नैनीताल तराई में हो रहे भूमि आन्दोलन के लम्बे इतिहास की बात करते हुए रिपोर्ट में 1988 में उत्तराखंड भूमिहीन किसान संगठन द्वारा चलाये जा रहे भूमि अधिकार आन्दोलन पर हो रहे पुलिस दमन को दर्ज किया गया है|

रिपोर्ट डाउनलोड करने के लिए नीचे क्लिक करें
Nainitaal _bhumi_andolan.pdf
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