People’s Union for Democratic Rights

A civil liberties and democratic rights organisation based in Delhi, India

जब से भारतीय जनता पार्टी की सरकार केंद्र में सत्ता में आई है तब से गौवंश के लिए सतर्कता की बढ़ती घटनाएं और गौ वध आरै गौ मांस (बीफ) बंदी से संबंधित कानूनों से छेड़छाड़ की खबरें लगातार सुर्खियां में हैं। गौ रक्षा के प्रत्यक्ष रूप से सांप्रदायिक व जातीय एजेंडा से होने वाली हिंसा के शिकार अकसर वे लोग हो रहे हैं जो या तो मवेशी व्यापारी हैं या किसी भी तरह बीफ खरीदने, खाने या इसकी ढुलाई करने से जुड़े हैं, इनमें से अधिकांश मुसलमान व दलित हैं। प्रेस में इन भयानक घटनाओं को तो कवर किया जा रहा है लेकिन इस गौ रक्षा आन्दोलन के दूरगामी परिणामों को नजरअंदाज किया जा रहा है, विशेषकर जिस तरह से राज्य के कानून के रूप में इसका कार्यान्वन हो रहा है। मार्च 2015 में गौ हत्या से सम्बंधित नियमां को निर्धारित करने के लिए हरियाणा सरकार ने पंजाब प्रोहिबिशन ऑफ़ काऊ स्लॉटर एक्ट 1955 की जगह ‘हरियाणा गौ वंश संरक्षण एवं गौ संवर्धन एक्ट’ पारित किया। लोगां के जीवन पर इस क़ानून के असर को समझने के लिए पी.यू.डी.आर. की एक जाँच टीम अक्टबूर 2016 और मार्च 2017 में हरियाणा गई।

हमारी जाँच टीम ने हरियाणा के एक जिले करनाल, (जहाँ हिंसा की कई घटनाएं घटी थीं) पर केन्द्रित रहने का निर्णय लिया ताकि समझा जा सके कि इस कानून का किसानां तथा मवेशी व्यापारियों के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ रहा है? क्या प्रशासन के पास इस कानून से होने वाले बदलावों को समायोजित करने के लिए बुनियादी ढांचा मौजूद था? दूध ना दे सकने वाली गाय को वध के लिए बेचने पर लगने वाली पाबंदी के बारे में किसानां का क्या कहना है? क्या गौशालाओं में छोड़े गए बैलों व बजंर मादा गायों को आश्रय देने की क्षमता है? इस कानून को लागू करने के लिए अपनी भूमिका के बढ़ाए जाने के बारे में पुलिस का क्या कहना है? निजी दान द्वारा संचालित गौशालाओं की क्या राय है और साथ ही मृत जानवरों की खाल उतारने व ठिकाने लगाने वालों का सोचना क्या है?

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