People’s Union for Democratic Rights

A civil liberties and democratic rights organisation based in Delhi, India

26 से 31 दिसंबर 2014 के बीच पी.यू.डी.आर. का एक जांच दल छत्तीसगढ़ के बीजापुर ज़िले के 9 गावों में गया जांच दल ने इन क्षेत्रों में माओवादियों से लड़ने के लिए तैनात सुरक्षा बलों के द्वारा की जा रही गिरफ्तारियोंधमकियोंएवं उत्पीड़न के साथ-साथ यौन-उत्पीड़न की घटनाओं को दर्ज़ किया मुख्यतः आदिवासीइन गावों (सार्केगुड़ाराजपेटाकोट्टागुड़ापुसबाकातीमापुरलिंगागिरीकोरसागुड़ाबासागुड़ाकोट्टागुडेम) के निवासियों ने सुरक्षा कैम्पों में रह रहे सशस्त्र बलों द्वारा प्रतिदिन किये जाने वाले अपराधों तथा हिंसक गतिविधियों के तथ्य बयान किये सुरक्षा बलों द्वारा लगातार इन क्षेत्रों में प्रभुत्व‘ स्थापित करने के प्रयास के दस्तावेज़ीकरण के अलावायह रिपोर्ट निम्न बिन्दुओं पर विशेष ध्यान आकर्षित करती है –

  1. आबादी की एक बड़ी संख्या के खिलाफ स्थाई वारंट‘ जारी किये गए हैं और इनमें से एक बड़ी संख्या को फरार‘ घोषित कर दिया गया है एक मोटा आंकलन यह दिखाता है की केवल बीजापुर में ही कम से कम 15 से 35 हज़ार लोग स्थाई वारंट‘ के आतंक और भय के साये में जी रहे हैं |
  2. सशस्त्र बल और स्पेशल पुलिस ऑफिसर (एस.पी.ओ.) बेलगाम तरीके से अवैध बर्ताव करते हैं जैसे की नियमतः आदिवासी ग्रामीणों के घरों पर छापा मारनापिटाई करनालूट-पातहवालात में बंद करना तथा उनको सुरक्षा कैम्पों में बेगार‘ (मुफ्त श्रम) करने के लिए बाध्य करना यौन-उत्पीड़न के मामले भी सामने आये |
  3. एक ओर सुरक्षा बलों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज़ करने की असंभवता और दूसरी ओर जेलों में बंद ग्रामीणों की गिरफ्तारियों की बढ़ती संख्या |
  4. कैम्पों में आपूर्ति-प्रणाली सुनिश्चित करने हेतु सेना द्वारा बढ़ते स्तर पर सड़क-निर्माण कार्यों की वजह से सशस्त्र बलों की उपस्थिति में अधिक्यता सड़कों को खोलने का काम सशस्त्र बलों द्वारा सड़क उदघाटन अभ्यास के बाद ही किया जाता है और तत्पश्चात सड़क-अवरोधकों तथा चेक पोस्टों पर बार-बार यात्रियों को रोका जाता है यह रोज़ाना का सिलसिला है |
  5. बीजापुर और बासागुड़ा के बीच चलने वाली सार्वजनिक बसों में सशस्त्र बलों के जवानों के होने के कारण ग्रामीणों को यात्रा के दौरान उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है अंतर्राष्ट्रीय नियमों की घोर अवहेलना करते हुएसुरक्षा बल जान-बूझकर संभाव्य मुठभेड़ों के खिलाफ यात्रियों को मानवीय कवच‘ के रूप में इस्तेमाल करते हैं |
  6. आदिवासी ग्रामीणों की जीवन-स्थिति पर कैम्पों ने बहुत बुरा प्रभाव डाला है कृषि-कार्यों में कमी और परिणामस्वरुप पारिवारिक आय और वेतनों में गिरावट इस उत्पीड़न का निश्चित परिणाम है ख़राब स्वास्थ्य सेवाओं के साथ ही वर्तमान स्कूल व्यवस्था (जिसके तेहत स्थानीय ग्रामीण सहायकों की सेवाएं ली जा रही थी) को अब इरादतन आश्रम स्कूलों‘ में बदला जा रहा है और इसका मकसद आदिवासी बच्चों को उनके घरों और ग्रामीण परिवेश से खींच लेना है |
  7. वर्तमान परिस्थिति की प्रबलता सलवा जुडूम की गतिविधियों (2005 से 2009 के बीच ग्रामीणों के बेदखली और सामूहिक विस्थापन) से तुलनीय है और उसको आगे बढ़ाती है वर्तमान परिस्थिति केवल विस्थापन और यतित पुनर्वास की दुर्गति को रेखांकित करती है जिसके तेहत पहले भी ग्रामीणों को गुज़रने के लिए बाध्य किया गया था |
  8. माओवादियों द्वारा बारम्बार किये जा रहे बम विस्फोटों तथा सड़कों को निशाना बनाये जाने के बावजूदग्रामीण सुरक्षा कैम्पों से डरते हैं क्योंकि वे सशस्त्र बल ही है जो उन्हें प्रताड़ित करते हैं और उनके खिलाफ नृशंस व्यवहार करते हैं |
  9. क्रमबद्ध आवधिक जनसंहारों के साथ-साथ इस क्षेत्र में दैनिक उत्पीड़न राज्य द्वारा चलाए जा रहे युद्ध की दोहरी रणनीति का हिस्सा है |
  10. वर्तमान सैन्य उपक्रम के पीछे यही मंसूबा है की खनन गतिविधियों को और अधिक बढ़ाने के लिए क्षेत्र को साफ कर दिया जाए उद्देश्य यह भी है की आदिवासियों की राज्य का विरोध करने की इच्छशक्ति को ख़त्म कर दिया जाये और उन्हें आधिकारिक प्रयासों को स्वीकार करने के लिए तैयार किया जाये |

जांच दल की रिपोर्ट निम्न लिंक से प्राप्त की जा सकती है

Yudh-Shetra Mein Adivasi Zindagiyan.pdf

शर्मिला पुरकायस्थ और मेघा बहल

(सचिव)

pudr@pudr.org

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