People’s Union for Democratic Rights

A civil liberties and democratic rights organisation based in Delhi, India

पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स हाल में हुए भोपाल फर्ज़ी मुठभेड़ के खिलाफ लखनऊ में धरना दे रहे रिहाई मंच के कार्यकर्ताओं के साथ स्थानीय पुलिस द्वारा की गई बदसलूकी की कड़ी निंदा करता है | आज इस देश में गुंडा राज देखने को मिल रहा है | जहां एक तरफ बर्बर तरीके से 8 विचाराधीन कैदियों को, जो की प्रतिबंधित संगठन सिमी से जुड़े मामलों में अभियुक्त थे, फर्ज़ी मुठभेड़ में मार दिया जाता है | वहीँ दूसरी तरफ इसके खिलाफ उठती आवाज़ों को खुलेआम दबाया जा रहा है |

2 नवम्बर 2016 को, उत्तर प्रदेश में सक्रिय रिहाई मंच नाम के संगठन द्वारा भोपाल में हुए फर्ज़ी मुठभेड़ के खिलाफ गांधी प्रतिमा, जीपीओ हजरतगंज लखनऊ पर एक धरना आयोजित किया गया था | रिहाई मंच 2007 से उत्तर प्रदेश में उन निर्दोष मुसलामानों के लिए संघर्षरत है जिनको फर्ज़ी मुकदमों में फंसा दिया जाता है और आतंकवादी घोषित कर दिया जाता है | रिहाई मंच के प्रवक्ता अनिल यादव ने पीयूडीआर को बताया की बुधवार दोपहर 3 बजे जब रिहाई मंच के कार्यकर्ता राजीव यादव और शकील कुरैशी धरना के आयोजन के लिए निर्धारित स्थान पर पहुंचे तभी जीपीओ पुलिस चौकी के इनचार्ज ओमकारनाथ यादव वहां आए और कार्यकर्ताओं को धरना देने से रोकने लगे, उन्हें आतंकवादी बुलाने लगे | फिर यादव और कुरैशी को चौकी में ले जाकर उन दोनों की बर्बर तरीके से पिटाई की | इसके कारण राजीव यादव के सर पर चोट आ गई और वे बेहोश हो गए | शकील कुरैशी का एक हाथ टूट गया | फिर इन दोनों को हजरतगंज कोतवाली ले जाकर वहां हवालात में बंदी बनाकर रखा गया | जब अन्य कार्यकर्ता वहां इकट्ठा हो गए तभी उन्हें छोड़ा गया | राजीव यादव रिहाई मंच उत्तर प्रदेश के महासचिव हैं और शकील कुरैशी लखनऊ इकाई के महासचिव हैं | रिहाई मंच के प्रवक्ता अनिल यादव ने तुरंत हजरतगंज कोतवाली में ओमकारनाथ यादव के खिलाफ लिखित शिकायत भी दर्ज़ की |

गौरतलब है की जो 8 मुसलमान कैदी फर्ज़ी मुठभेड़ में मारे गए उन्हें तो नेताओं द्वारा आतंकवादी घोषित किया ही जा चुका है | साथ ही हवा का रुख यूँ है की आज सरकार के खिलाफ धरना देने वालों को भी आतंकवादी बताया जा रहा है | और उन पर हमला किया जा रहा है | इस सन्दर्भ में देश की साम्प्रदायिक चरित्र वाली और दबंग हुकूमत के सामने केवल एक ही सवाल रह जाता है – क्या इस हुकूमत को अब भी इन खून के धब्बों की सच्चाई को छिपा पाना मुमकिन मालुम होता है?

मौशुमी बासु, दीपिका टंडन
सचिव, पीयूडीआर

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