People’s Union for Democratic Rights

A civil liberties and democratic rights organisation based in Delhi, India

पीयूडीआर छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर ज़िले में पत्रकारों के खिलाफ चलाए जा रहे सरकार के सुनियोजित अभियान की कड़ी निंदा करता है | इस संदर्भ में पीयूडीआर छत्तीसगढ़ के पत्रकारों की तरफ से बनाई गई पत्रकार सुरक्षा क़ानून संयुक्त संघर्ष समिति व पत्रकारिता की सुरक्षा और स्वतंत्रता की उनकी मांग का पूरी तरह से  समर्थन करता हैं |

छत्तीसगढ़ में पत्रकारों को झूठे मामलों में फंसाया जा रहा है, क्योंकि वे 2014 से राज्य में लगातार बढ़ती फर्ज़ी मुठभेड़ की घटनाओं, झूठी गिरफ्तारियों और तथाकथित ‘माओवादियों’ के आत्मसमर्पण की घटनाओं के खिलाफ बोल एवं लिख रहे हैं | इसलिए पत्रकारों को डराया, धमकाया एवं उन पर हमलाकिया जा रहा है | इस प्रकार की गतिविधियों को बस्तर रेंज के इंस्पेक्टर जनरल कल्लूरी की अगुवाई में पुलिस और राज्य द्वारा निर्मित चौकसी समूहों की मदद से अंजाम दिया जा रहा है। इस प्रकार की गतिविधियों का सरकार के ‘मिशन 2016’ के साथ सीधा जुड़ाव है | मिशन 2016 के तेहत सरकार 2016 के अंत तक बीजापुर, सुकमा, और दर्भा जिलों से माओवादियों का सफाया करना चाहती है | सरकार इस मिशन को सफल बनाने के लिए गैरकानूनी और दमनकारी गतिविधियों को तीव्र कर रही है | साथ ही इस मिशन के खिलाफ उठने वाली हर आवाज़ को दबाने का भी पुरज़ोर प्रयास कर रही है | यह सब सरकार की उस मुहीम का भाग है जिसके तेहत वह सलवा जुडूम के एक नए रूप में उभर कर आने, आदिवासियों के जल, जंगल और ज़मीन के अधिकारों के हनन, और गैरकानूनी तरीके से खनन के लिए दिए जा रहे पट्टों का खुलासा रोकने का प्रयास कर रही है |

इनमें से कुछ मामले जो पत्रकारों पर हो रहें अत्याचारों का सच उजागर करते हैं निम्लिखित हैं –

1.       सोमेरू नाग – ये राजस्थान पत्रिका के लिए ग्रामीण मुद्दों पर लिखते थे। 16 जुलाई 2015 को इन्हें गिरफ्तार किया गया।  तीन दिन की गैर-कानूनी हिरासत में रखा गया। इन्हें भारतीय दण्ड संहिता और आर्म्स एक्ट के तहतआरोपित किया गया है। इन पर यह आरोप है की, जब 26 जून 2015 को छोटे कदमा में कुछ लोग एक रोड क्रेशर को आग लगा रहे थे, सोमेरु नाग पुलिस की गतिविधियों पर नज़र रखने का काम कर रहे थे।

2.       संतोष यादव – दरभा में दैनिक नई दुनिया के लिए बतौर स्थानीय पत्रकार काम करते थे।  संतोष ने कई झूठे ‘आत्मसमर्पणों’ के बारे में लिखा था और पुलिस का इनफॉर्मर बनने से इंकार कर दिया था। उन्होंने दरभा हत्याकांड और झिरम घाटी 2013 हत्याकांड के बारे में भी लिखा था। दरभा हत्याकांड के बाद मौके पर पहुँचने वाले ये सबसे पहले पत्रकार थे।  तभी से कल्लूरी की इन पर नज़र थी। 29 सितम्बर 2015 को इन्हें दरभा पुलिस द्वारा उठा लिया गया। गैर कानूनी हिरासत में कई दिन तक बिना कपड़ों के निर्वस्त्र रखा गया, प्रताड़ित किया गया और यातनाएं देने के धमकी दी गई। अब इन्हें छत्तीसगढ़ स्पेशल पब्लिक सिक्यूरिटी एक्ट और अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट के तहत आरोपित किया गया है (FIR 50/15 दरभा थाना, बस्तर – धारा 147, 148, 149, 120ब, 302, 307, 341 भारतीय दण्ड संहिता, धारा 3,4 एक्सप्लोसिव सब्सटांस एक्ट, धारा 25, 27 आर्म्स एक्ट, 8(1)(2)(3) छत्तीसगढ़ स्पेशल पब्लिक सिक्यूरिटी एक्ट, और यूएपीए) । इनको 21 अगस्त 2015 को सुरक्षा बलों द्वारा आयोजित ‘रोड-ओपनिंग ऑपरेशन’ के दौरान हुए मुठभेड़ में एक आरोपी बनाया गया है।

3.       मालिनी सुब्रमण्यम -‘स्क्रोल’ नामक इन्टरनेट पत्रिका के लिए लिखने वाली मालिनी, लगातार बस्तर क्षेत्र में हो रहे फर्ज़ी मुठभेड़, तथाकथित आत्मसमर्पण, सुरक्षा बलों द्वारा किये जा रहे मानवाधिकार उल्लंघनों और लोगों के जीवन को बेहाल बनाने जैसे विषयों पर लगातार लिखती रही थी।

मालिनी के घर के बाहर 8 फरवरी 2016 को ‘सामाजिक एकता मंच’ द्वारा प्रदर्शन किया गया, पत्थर फेंके गए। इससे ठीक पहले इनके मकान मालिक और घर पर काम करने वाली महिला को पुलिस ने बुलाकर पूछताछ भी की थी। 18 फरवरी को इन्हें मकान मालिक ने घर खाली करने को कह दिया | बढ़ते दबाव के कारण मालिनी को बस्तर छोड़ना पड़ा।

4.       अलोक पुतुल – बीबीसी के पत्रकार हैं। इन को बस्तर के आईजी और एसपी ने यह कहकर मिलने से इनकार कर दिया की वे एकतरफ़ा पत्रकारिता करते हैं। फिर इन्हें जान के खतरे की धमकी मिलने लगी। इसके कारण इन्हें बस्तर छोड़ना पड़ा।

5.       प्रभात सिंह – पत्रिका और बाद में ईटीवी के लिए काम कर रहे थे।  इन्हें 21 मार्च 2016 को गिरफ्तार किया गया | प्रभात को एक दिन गैर क़ानूनी हिरासत में रखकर यातनाएं दी गई। इनकी गिरफ्तारी के एक दिन पहले इन्हें ईटीवी से बर्खास्त कर दिया गया। इन पर चार मुकदमें थोपे गए हैं :

ज़िला थाना धारा FIR संख्या दिनांक आरोप
दांतेवाड़ा गीदम 420, 120ब, 34 भारतीय दण्ड संहिता,

3(2)(vक) अनुसूचित जाति, जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989

77 04.08.15 आधार कार्ड बनवाने के लिए चंदा इकठ्ठा करने का आरोप

 

दांतेवाड़ा वारसुर 420 भारतीय दण्ड संहिता 24 16.10.15
दांतेवाड़ा गीदम 448, 385, 353, 186, 34 भारतीय दण्ड संहिता,

धारा 6 छत्तीसगढ़ सार्वजनिक परीक्षा अधिनियम

 

79 08.08.15 स्कूल में जबरन घुसकर कथित रूप से परीक्षा के दौरान हो रही नक़ल के बारे में लिखने की धमकी देकर पैसे की मांग करने, और सरकारी अफसर के काम में बाधा डालने का आरोप

 

बस्तर   67, 67अ इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 292 भारतीय दण्ड संहिता     वाटसैप पर किसी वरिष्ठ पुलिस अफसर के बारे में एक अश्लील सन्देश भेजने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था | 1 मार्च 2016 को इनके द्वारा ‘बस्तर न्यूज़’ नामक एक ग्रुप पर भेजा गया सन्देश यह था – [पत्रकार सुरक्षा कानून से केवल उन्हें परहेज़ है जो आलरेडी मामा की गॉड में बैठे हैं देशद्रोही गद्दार जयहिन्द जय भारत”]

6.       दीपक जैसवाल – ये दैनिक दैनांदिनी के लिए लिखते थे | इन्होने 2015 में इस क्षेत्र में स्कूलों में बड़े पैमाने पर हो रही नक़ल के बारे में खबरें लिखीं थी। इन्हें 26 मार्च 2016 को उस वक़्त गिरफ्तार किया गया जब ये कोर्ट में प्रभात सिंह की ज़मानत की अर्ज़ी दाखिल कर रहे थे। इन्हें गीदम थाने के मामले में प्रभात सिंह का सह-आरोपी बताया जा रहा है |

एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इण्डिया ने इन मामलों में जाँच के लिए मार्च 2016 में एक दल भेजा था। जांच दल भी इसी निष्कर्ष पर पहुंचा था की बस्तर में पत्रकार डरे हुए हैं, और उन पर भारी दबाव है। 10 मई 2016 को  छत्तीसगढ़ पत्रकार सुरक्षा क़ानून संयुक्त संघर्ष समिति ने पत्रकारों पर थोपे गए फर्ज़ी आरोपों के विरोध में और पत्रकारिता सुरक्षा क़ानून की मांग को लेकर दिल्ली में प्रदर्शन किया।

इस संदर्भ में पीयूडीआर याद दिलाना चाहता है कि अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के तहत एक युद्ध-क्षेत्र में पत्रकारों को नागरिकों (गैरफौज़ियों) के बराबर ही सुरक्षा प्रदान करना अनिवार्य है [जिनेवा कन्वेंशन 1949 (अनुच्छेद 4A(4)) और अतिरिक्त प्रोटोकॉल (प्रोटोकॉल 1, अनुच्छेद 79)] | बस्तर में, जो की पिछ्ले कई सालों से एक युद्ध-क्षेत्र के रूप में मौजूद है, राज्य की तरफ से स्पष्ट रूप से इन अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों का उल्लंघन किया जा रहा है |

पीयूडीआर पत्रकारों की स्वतंत्रता पर राज्य द्वारा लगाई जा रही रोक एवं उनके दमन का पुरज़ोर विरोधकरता है, और यह मांग करता है कि –

1. छत्तीसगढ़ में पत्रकारों पर थोपे गए सभी मुकदमें वापस लिए जाएँ |

2. राज्य द्वारा जिनेवा कन्वेंशन के नियमों का पालन किया जाए |

3. भारत सरकार द्वारा जिनेवा कन्वेंशन के अतिरिक्त प्रोटोकॉल का समर्थन किया जाए |

 

दीपिका टंडन और मौशुमी बासु

सचिव, पीयूडीआर

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