People’s Union for Democratic Rights

A civil liberties and democratic rights organisation based in Delhi, India

16 सितम्बर 2016 को उना दलित अत्याचार लड़त समिति के संयोजक एवं युवा नेता जिगनेश मेवानी को अहमदाबाद पुलिस ने पकड़ लिया | मेवानी को उस समय पकड़ा गया जब वह दिल्ली से लौटे | वे दिल्ली में जंतर मंतर पर दलित स्वाभिमान संघर्ष समिति द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में आमसभा को संबोधित करके लौट रहे थे | इस सभा में उन्होंने 1 अक्टूबर से रेल रोको आन्दोलन का ऐलान किया था | गुजरात पुलिस द्वारा इतनी तकलीफ इसीलिए उठायी गईं क्योंकि 17 सितम्बर को गुजरात के दाहोद ज़िले के लिमखेडा गाँव में प्रधानमन्त्री मोदी के जन्मदिवस समारोह की तैयारियां थीं | मेवानी को क्राइम ब्रांच, गैकवाढ़ हवेली में पकड़कर हिरासत में रखा गया | इसके बाद उन्हें तब तक अहमदाबाद पुलिस की चौकसी में रखा गया जब तक मोदी गुजरात में रहे |

दलित अत्याचार लड़त समिति गुजरात में 11 जुलाई के उना हादसे के बाद उभरा एक संगठन है जिसने दलितों के मूल मुद्दों को मुख्य धारा में रखने की कोशिश की है | जैसे, हर दलित परिवार के लिए 5 एकड़ ज़मीन (इनमें वाल्मीकियों को प्राथमिकता और औरतों के नाम ज़मीन), सभी सरकारी सफाई कर्मचारियों को स्थायी कर 7वे वेतन आयोग के अनुसार भुगतान, सितम्बर 2012 में सुन्दरगढ़ जिले के थनगढ़ में पुलिस गोलीबारी में मारे गए 3 दलितों के मामलों में उचित कार्यवाही आदि | गुजरात में मोदी के विकास मॉडल को आड़े हाथ लेते हुए इस आन्दोलन ने कई अनोखे तरीकों से इन मुद्दों की ओर ध्यान आकर्षित किया है | जैसे, कलेक्टर ऑफिस के बाहर जानवरों के कंकाल फेंककर इन्होंने शपथ ली की अब वे ये काम नहीं करेंगे | इस आन्दोलन में गौरक्षा के मुद्दे के खिलाफ दलितों और मुसलमानों की एकता भी देखने को मिली है |

गुजरात में यह दलित आन्दोलन एक सामाजिक क्रान्ति के रूप नज़र आता है जिसने जातिवाद की जड़ों पर सीधा हमला साधा है | जातिवाद के सामाजिक और आर्थिक ढाँचे को ध्वस्त करता यह आन्दोलन अपने आप में बेमिसाल है | साथ ही जातिवाद के ढाँचे को संरक्षण देते राज्य की भूमिका को भी बहुत प्रखर तरीके से उजागर किया है | ख़ास तौर से आज के इस हिन्दुत्ववादी एवं फासीवादी सन्दर्भ में | इस सन्दर्भ में मेवानी के साथ जो घटा उससे सवाल यह उभरते हैं की मोदी सरकार को किस बात का डर है?

  • क्या मोदी सरकार को एक दलित युवा नेता द्वारा दलितों को संघर्षरत करने की क्षमता से डर है ?
  • क्या उन्हें डर है की उनके देश भर में चल रहे हिन्दुत्ववादी गौरक्षा अभियान की पोल खुल जाएगी?
  • क्या उन्हें डर है की सरकार के संरक्षण में गौरक्षकों द्वारा देश भर में किये जा रहे दमन के किस्से सार्वजनिक हो जाएंगे? 13 सितम्बर को अहमदाबाद में एक और हादसा पता चला जिसमें 25 वर्षीय मुहम्मद आयूब को गौरक्षकों ने गौकशी के संदेह पर पीटा जिसके कारण उसकी मृत्यु हो गई |
  • क्यों मोदी सरकार दलित आन्दोलन की मांगों से दूर भाग रही है ?
  • क्यों सरकार इस बात से भाग रही है की आज भी दलितों को मैला ढोने, शौचालय साफ़ करने, शवों और कंकालों से सम्बंधित व्यवसायों को करने के लिए मजबूर किया जाता है?
  • क्यों दलितों के भूमि-अधिकार की जायज़ मांगों को नज़रंदाज़ किया जा रहा है?
  • क्यों दलितों के खिलाफ अत्याचारों के मामलों में उचित कार्यवाही नहीं हो रही?

सवाल स्पष्ट हैं, क्या जवाब मोदी सरकार देने को तैयार है?

दीपिका टंडन, मौशुमी बासु
सचिव, पीयूडीआर

pudr@pudr.org

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